जनमत भास्कर छिंदवाड़ा:-वार्ड नंबर 25, बरारीपुरा स्थित प्राचीन स्वयंभू सिद्ध मंदिर,श्री बगलामुखी माता मंदिर बरारीपुर छिंदवाड़ा में आज दिनांक 03 मई से 05 मई 2025 तक श्री बगलामुखी प्रगटोत्सव पर्व का त्रिदिवसीय आयोजन किया जा रहा है। उक्ताशय की जानकारी समिति के विजय इंगोले ने देते हुये बताया कि इस त्रिदिवसीय कार्यकम में प्रथम दिवस 03.05.25 दिन शनिवार को रात्रि 8 बजे से श्री श्री भगवती देवी जागरण ग्रुप द्वारा देवी जागरण,दिनांक 04.05.25 दिन रविवार को रात्रि 8.30 बजे शिव तांडव ग्रुप,सोनाखार (डमरू दल) की मनमोहक प्रस्तुति,दिनांक 05.05.25 दिन सोमवार को प्रातः 6 बजे से माँ भगवती पीताम्बरा का बगलामुखी मंत्रोप्चार द्वारा महाभिषेक,दोपहर 12 बजे बगलामुखी विधि द्वारा हवन, शाम 4 बजे 56 भोग महाप्रसाद एवं शाम 6 महाआरती एवं रात्रि 07 बजे से विशाल भंडारा का आयोजन किया गया है।
3 एवं 4 तारीख को बैठ सकेंगे पूजन में भक्तजन
उन्होनें बताया कि आगामी 5 मई को श्री बगलामुखी प्रकट उत्सव के अवसर पर 3 दिवसीय आयोजन 3 मई से शुरू होगा,जिसमें माँ बगलामुखी से संबंधित यंत्रो, पाठ,नाम जप,अर्चन आदि किये जावेगे,,सामान्य भक्तजनो के लिए दिनांक 3 मई और 4 मई को शाम 5 बजे एवं रात्रि 7 बजे से श्री बगलामुखी सहस्रार्चन द्वारा पूजा कराई जाना तय किया गया है,जो भी भक्तजन इस पूजा मे शामिल होना चाहते है, वे पूजा पाठ पूजन सामग्री.. अभिषेक के सामान एवं 1008 की मात्रा मे कोई एक सामग्री जैसे खारक,बदाम,, मूंगफली दाना,काजू,किशमिश कोई एक सामग्री लेकर तथा पुरुष वर्ग धोती कुर्ता या कुर्ता पायजामा पहने तथा मातृशक्ति साड़ी पहनकर आवे।समिति ने समस्त भक्तजनों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर पुण्य लाभ लेने की अपील की।

श्री बगलामुखी माता मंदिर बरारीपुरा का इतिहास
माता माय मंदिर के नाम से प्रसिद्ध मंदिर से संबंधित जानकारी सबसे पहले सामाजिक भाट (जो कि समाज के इतिहास की जानकारी रखते हैं) द्वारा मिलती है।इस देवस्थान में स्थानीय शासक द्वारा अन्न जैसे धान,गेहूँ,मक्का,ज्वार व सब्जियों को उगाने के लिये बरार क्षेत्र से खेतिहर समाज के लोगों को इस क्षेत्र में बसाया और उन्हें रहने के लिये यह स्थान दिया और इस क्षेत्र का नाम बरारीपुरा पड़ा और चौदह स्थानों में उन्हे बॉटकर एक विशालकाय इमली के पेड़ के नीचे देवस्थान जो कि पहले से विद्यमान था। जहाँ आसपास के जंगलों में रहने वाले पूजन करते थे और आपसी विवादों का निपटारा किया करते थे। इसी तरह इस देवस्थान पर 14 गांवो में उपजे विवादों का पंचायत के जरिये न्याय किया जाता था और विवादों का निपटारा किया जाता था। इस तरह न्याय की देवी के रूप में पहला प्रमाण मिलता है,जिसे बगलामुखी माता के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1920 से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वर्गीय जयतुला बाई के मकान के सामने पायरी पर विशाल इमली के पेड के नीचे माता माय का पूजन होता था जिसकी प्रमुख सेविकायें स्वर्गीय जयतुला बाई के साथ दुलाबाई और गुनाबाई भजन पूजन करती थी और नवरात्रों में विशेष पूजन करती थी। माता माय के इस स्थान पर एक बहुत बड़ा अखाड़ा भी था, जिसके द्वारा प्रतियोगितायें होते रहती थी।वर्ष भर कोई न कोई धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम होते रहते थे.और इस स्थान पर खेतिहर समाज की पंचायत लगा करती थी और न्यायिक प्रक्रियायें एवं विवादों का निपटारा किया जाता था ।
देवी पूजन के साथ-साथ गणेश उत्सव का भी आयोजन सार्बजनिक रूप से किया जाता था और आजादी के आंदोलन की सूचनाओं का आदान-प्रदान होता था।वर्ष 1883 में बाल गंगाधर तिलक के सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत से ही माता माय के इस देव स्थान पर सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाया जाने लगा और इस तरह छिंदवाड़ा में सार्वजानिक गणेशोत्सव की शुरुआत हुई ।
कहीं न कहीं इस मंदिर का जीर्णोद्वार आजादी के आंदोलन के जुड़ा रहा है। परिणाम स्वरूप सभी समाज के प्रबुद्ध समाज सेवकों द्वारा माता माय के मंदिर के जीर्णोद्वार के लिये “श्री देवी जी का मंदिर जीर्णोद्वार बरारीपुरा छिंदवाड़ा समिति ” बनायी गई। जिसके अध्यक्ष स्व श्री नारायण राव थोरात को बनाया गया व कोषाध्यक्ष स्व श्री धर्माजी सलोने को बनाया गया और मंदिर की रूपरेखा निर्माण की देखरेख स्व. श्री कृष्णा स्वामी नायडू (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी) को जिम्मेदारी सौंपी गई। समिति के अन्य सदस्यों में स्व श्री मभूत राव धस (दास), श्री भानबोंडे, स्व श्री जयदेव महाजन, स्व. श्री राजाराम सम्भारे, स्व श्री विठोबा ठाकरे, स्व श्री पुण्डलिक राव कपाले, स्व श्री कृष्णराव बाडगे, स्व. श्री नत्थूजी ठाकरे, स्व श्री उदयराम विश्वकर्मा, स्व श्री गोविन्दराव अलोने, स्व श्री बाबूराव चरपे व अन्य कोग थे। सभी सदस्यों द्वारा चंदा इकट्टा कर विशाल इमली के पेड को कटवाकर मंदिर का वर्ष 1946 में जीर्णोद्वार किया गया ।
शासन द्वारा मंदिर को पंचायती मंदिर के रूप में पट्टा दिया गया और मंदिर के आसपास लगभग 1000 स्के. फिट की खुली जगह छोडी गई ताकि मंदिर के चारों तरफ बैल जोडी लेकर परिक्रमा कर सके और माता माय का पूजन विधि विधान से दामोदर महाराज द्वारा किया जाता था,सूर्योदय के साथ माता माय का पूजन आरती और सूर्यास्त के साथ माता माय का पूजन आरती कर भोग लगाकर माता के कमरे के पट बंद कर दिये जाते थे। बाकी मंदिर परिसर में भजन पूजन होते रहते थे। बिजली फिटिंग की व्यवस्था और बिल का भुगतान स्व श्री दौलत राव ठेकेदार द्वारा किया जाता था। नवरात्रि के दौरान माता के कमरे के पट पूरे समय खुले रहते थे।
पोले के पर्व के दौरान बैलजोडी सहित मंदिर की परिक्रमा व पूजन कर तोरण स्थल पर पहुँचने का विशेष महत्व या और यह परंपरा कब से चली आ रही है इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है। इस मंदिर में देवी कीर्तन एवं हरिनाम सप्ता का आयोजन विशेष महत्व रखता है। मंदिर में मजन की शुरूवात स्व. श्री बाबूराव चरपे जी द्वारा की गई उनके साथ बाबू हाजन,बामन राव ठाकरे,नत्थू जी बाडबुदे,लालसिंह पटेल, नामदेव कराडे,बालाजी नारेकर,यशवंत राव दास, राजाराम कोल्हे,डोमाजी घोरसे,जानराव सावले, गोविन्दा,सावले आदि थे।
